अब तक माना जाता था कि खेती-किसानी कम पढ़े या अनपढ़ लोगों का पेशा है लेकिन अब यह मिथक पूरी तरह टूट चुका है। शुगर बाउल कहे जाने वाले पश्चिमी यूपी में फूलों की खेती से किसानों की अर्थव्यवस्था महक रही है। मेरठ जिले में फूलों की खेती का बड़ा उत्पादन हो रहा है।
प्रगतिशील किसान पालीहाउस की सहायता से गुलाब व जरबेरा की शानदार खेती कर रहे हैं। इसके अलावा खुले खेत में रजनीगंधा, गेंदा, ग्लैडियोलस व गुलदावरी का भी बड़ा उत्पादन हो रहा है। उद्यान विभाग के अनुसार, मेरठ में लगभग 1350 हेक्टेयर में फूलों की शानदार खेती की जा रही है। मेरठ के फूलों से दिल्ली की मंडी महक रही है। जहां से मेरठ के फूलों की खूशबू देश भर में पहुंच रही है।
विदेशो से पढ़ाई के बाद कर रहे खेती
आइआइटी रुड़की से एमटेक, बैंकाक से एमबीए, अब कर रहे गुलाब की खेती आइआइटी रुड़की से एमटेक और बैंकाक से इंटरनेशनल बिजनेस में एमबीए के बाद मेरठ के विवेक विज ने दुबई, फ्रांस व आस्ट्रेलिया में उच्च पदों पर नौकरी की लेकिन खुद को ज्यादा समय नौकरी में नहीं रमा सके और फूलों की खेती करने की ठानी।
इसके लिए उन्होंने गुलाब की खेती को चुना। इन दिनों वह गुलाब की उम्दा खेती कर रहे हैं। गुलाब की खेती से विवेक विज ने खेती को एक नए रूप में परिभाषित किया और खुद की भी अलग पहचान बनाई।साकेत निवासी विवेक विज ने वर्ष 2000 में आइआइटी रुड़की से एमटेक किया था। 2006 में बैंकाक से इंटरनेशनल बिजनेस में एमबीए के बाद देश-विदेश में नौकरी की। नीदरलैंड बड़ा फूल उत्पादक देश हैं।
वहां उन्होंने फूलों की खेती की तकनीक सीखी। मेरठ-करनाल हाईवे स्थित भूनी चौराहे के पास तीन एकड़ में पाली हाउस बनाकर इसमें नीदरलैंड की ”टाप सीक्रेट” प्रजाति के गुलाब लगाए। गर्मी के दिनों में एक पाली हाउस से गुलाब के 150 बंच तैयार होते हैं। एक बंच में 20 फूल होते हैं। आफ सीजन में एक बंच की कीमत 20 रुपये रहती है जबकि शादी सीजन में यही बंच 350 रुपये तक बिकता है।
वह अपने उत्पादन का 70 प्रतिशत गुलाब रिटेल बाजार में ही आपूर्ति करते हैं। पौधा लगाने के छह माह बाद फूल तैयार होने लगते हैं। इस पौधे की आयु तीन वर्ष है। विवेक की मानें तो वह एक एकड़ के पाली हाउस से एक वर्ष में पांच-छह लाख रुपये तक आमदनी लेते हैं।लाकडाउन में जरबेरा की खेती को बनाया रोजगारबागपत रोड स्थित किठौली निवासी प्रदीप कुमार बनारस से काम छोड़कर अपने पैतृक खेती में जुट गए।
उन्होंने पालीहाउस लगाकर उसमें जरबेरा फूल की खेती शुरू की। इससे पहले उनके यहां गन्ने की खेती होती थी। प्रदीप का कहना है कि दिसंबर से अप्रैल तक उन्होंने आठ लाख रुपये कीमत का फूल दिल्ली की मंडी में बेचा है। वह फूलों की खेती से काफी प्रभावित हैं। उन्होंने ठेकेदारी का काम छोड़कर खेती को ही स्थायी तौर पर अपना रोजगार चुन लिया है।