राजधानी लखनऊ के पहले पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय के हटने को लेकर तरह-तरह की चर्चाओं का बाजार गर्म है। सुजीत पांडेय को हटाया जाना बजाहिर शराब कांड की ओर इशारा करता है लेकिन पीछे की वजह सिर्फ शराब कांड नहीं है। काफी दिनों से कमिश्नर को बदले जाने की चर्चाएं चल रही थीं लेकिन उन्हें हटाकर एटीसी सीतापुर भेज दिया जाएगा इसकी उम्मीद खुद सुजीत पांडेय को भी नहीं थी।
दरअसल पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद से ही पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी के बीच के अधिकारों को लेकर मनमुटाव था। यह मनमुटाव भूमाफिया पर कार्रवाई और घर गिराए जाने को लेकर और बढ़ गया। अफसरों का एक खेमा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को यह समझाने में कामयाब रहा कि पुलिस कमिश्नर द्वारा माफिया पर कार्रवाई में पूरी दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही है।
आईएएस अफसरों का एक गुट इसलिए भी सुजीत पांडेय के विरोध में था क्योंकि वह पुलिस कमिश्नर के अधिकारों को बढ़ाए जाने को लेकर पैरवी कर रहे थे। दिल्ली और मुम्बई जैसे बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नर के पास असलहों के लाइसेंस, सराय और निजी सुरक्षा उपलब्ध कराए जाने का अधिकार है। यूपी में यह अधिकार पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद भी डीएम के ही पास रह गया। कुछ मातहतों से रिश्ते अच्छे न होने की भी बात सामने आई है लेकिन इसका असर पुलिसिंग पर नहीं पड़ा।
तीन बार उड़ चुकी थी स्थानांतरण की अफवाह
ऐसा नहीं है कि सुजीत पांडेय को अचानक हटा दिया गया। तीन मौके ऐसे आए जब लगा कि सुजीत पांडेय का लखनऊ पुलिस कमिश्नर का कार्यकाल खत्म हो गया। पहली बार जब वह जून के अंत में अचानक बीमार पड़ गए और एडीजी रेलवे संजय सिंघल को लखनऊ पुलिस कमिश्नर का चार्ज दे दिया गया।
दूसरा मौका मोहर्रम के दौरान धरने पर बैठे मौलाना कल्बे जव्वाद को उठाने को लेकर हुए विवाद ने भी सुजीत पांडेय की कुर्सी को हिला दिया था। सितंबर में आधा दर्जन एडीजी को हटाए जाने को लेकर चर्चा हुई जिसमें पुलिस कमिश्नर लखनऊ का भी नाम था।
ट्रैफिक में हुआ सुधार: कमिश्नरेट बनने के बाद लखनऊ के यातायात में अभूतपूर्व सुधार हुआ। जहां पहले सिग्नल तोड़ना आम बात हुआ करती थी, वहां बिना यातायात पुलिस के भी लोग सिग्नल के नियमों का पालन करने लगे हैं।
दूसरी बार लखनऊ के कप्तान बने
नए पुलिस कमिश्नर ध्रुवकांत ठाकुर दूसरी बार राजधानी के कप्तान बने हैं। पहले वह मायावती सरकार में 9 नवंबर 2010 को एसएसपी, डीआईजी के पद पर तैनात हुए थे। सत्ता परिवर्तन के बाद 17 मार्च 2012 को हटाकर डीआईजी आरटीसी चुनार भेज दिया गया था। अब दस साल बाद जब पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू हुई तो बतौर पुलिस कमिश्नर डीके ठाकुर लखनऊ के दोबारा कप्तान बने।
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