इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के समक्ष प्रदेश के बहुचर्चित हाथरस काण्ड मामले में राज्य सरकार ने वहां के डीएम प्रवीण कुमार को न हटाने के निर्णय की जानकारी देकर इसकी चार वजहें भी कोर्ट को बताईं। साथ ही पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को तथ्यों के साथ उचित ठहराने की कोशिश भी की। यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया।
मामले में स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही न्यायमूर्ति पंकज मितल और न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ के समक्ष यूपी सरकार की तरफ से पेश अधिवक्ता ने उक्त जानकारी कोर्ट को दी। गत 25 नवंबर को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उनसे पूछा था कि हाथरस के डीएम को वहाँ बनाए रखने को लेकर उनके पास क्या निर्देश हैं। कोर्ट ने सुनवाई के बाद आदेश दिया, जो बुधवार को हाईकोर्ट की वेबसाईट पर उप्लब्ध हुआ। आदेश के मुताबिक, कोर्ट के पूछने पर सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता एसवी राजू ने कहा कि इस मुद्दे पर गौर करने के बाद सरकार ने हाथरस के डीएम को न हटाने का निर्णय लिया है।
इसका पहला कारण बताया कि राजनीतिक खेल खेला जा रहा है और राजनीतिक दबाव बनाने को राजनीतिक दलों ने अन्यथा वजहों के साथ डीएम के तबादले को राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। दूसरा कारण यह बताया कि मामले की तफ्तीश संबंधी साक्ष्य में डीएम के जरिए छेड़छाड़ का सवाल ही पैदा नहीं होता है। तीसरा कारण यह कि पीड़िता के परिवार की सुरक्षा अब सीआरपीएफ के हाथ में है, जिसका राज्य सरकार व इसके प्राधिकारियों से कोई सरोकार नहीं है। चौथा यह कि मामले की विवेचना सीबीआई कर रही है। इसमें भी राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है।
राज्य सरकार के वकील ने पीड़िता के रात में कराए गए अन्तिम संस्कार को तथ्यों के साथ उचित ठहराने की कोशिश भी की। यह भी कहा कि इस सम्बन्ध में हाथरस के जिलाधिकारी ने कुछ भी गलत नहीं किया। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 16 दिसंबर को नियत किया है।
यह है मामला
अदालत ने पहले गत 12 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान हाथरस में परिवार की मर्जी के बिना रात में मृतका का अंतिम संस्कार किए जाने पर तीखी टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि बिना धार्मिक संस्कारों के युवती का दाह संस्कार करना पीड़ित, उसके स्वजन और रिश्तेदारों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है। इसके लिए जिम्मेदारी तय कर कार्रवाई करने की आवश्यकता है। कोर्ट ने इस मामले में मीडिया, राजनीतिक दलों व सरकारी अफसरों की अतिसक्रियता पर भी नाराजगी प्रकट करते हुए उन्हें इस मामले में बेवजह बयानबाजी न करने की हिदायत भी दी थी। मालूम हो कि उतर प्रदेश के हाथरस जिले के बूलगढ़ी गांव में गत 14 सितंबर को दलित युवती से चार लड़कों ने कथित रूप के साथ सामूहिक दुष्कर्म और बेरहमी से मारपीट की थी।
युवती को पहले जिला अस्पताल, फिर अलीगढ़ के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। हालत खराब होने पर पर उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया, जहां 29 सितंबर को मृत्यु हो गई थी। मौत के बाद आनन-फानन में पुलिस ने रात में अंतिम संस्कार कर दिया था, जिसके बाद काफी बवाल हुआ। परिवार का कहना था कि उनकी मर्जी के खिलाफ पुलिस ने पीड़िता का अंतिम संस्कार कर दिया, हालांकि पुलिस इन दावों को खारिज कर रही है। हाथरस के तत्कालीन एसपी विक्रान्त वीर ने कोर्ट में कहा था कि पीड़िता के शव का रात में अन्तिम संस्कार कराने का निर्णय उनका और डीएम का था। मामले की अब हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच कर रही है।
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