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आर्थिक तंगी के कारण जूते चप्पलों की दुकान पर किया काम,गरीबी भी नहीं तोड़ पाई हौसला,जानिए शुभम गुप्ता के IAS अफसर बनने की कहानी

पूरे देश में कई ऐसे बच्चे होते हैं जो आईएएस अफसर बनने के सपने देखते हैं और उसे पूरा भी करते हैं. इस संघर्ष में लोग अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं लेकिन जब तक नहीं पाते हार नहीं मानते हैं. दिल्ली से लेकर पटना और यूपी के लखनऊ गोरखपुर हर जगह से बच्चे होते हैं जो कोचिंग क्लासेज करते हैं आईएएस अफसर बनने के लिए. कई बच्चे तो मुश्किलों से लड़के हार मान के घर बैठ जाते हैं लेकिन कई लोग जब तक अफसर नहीं बनते चैन की सांस नहीं लेते है.

ऐसे ही मुश्किलों से लड़ते हुए राजस्थान का एक लड़का जो अपने पिता का घर की जिम्मेदारियों में हाथ भी बताता था लेकिन अपने सपने को जिंदा रखा और कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद उसने अपने अफसर बनने के सपने को पूरा कर दिखाया. परिवार की जिम्मेदारियों से दबकर वह अपने सपने से दूर चला गया लेकिन फिर उसने ठान लिया कि अपना सपना पूरा कर के रहना है और अंततः वह आईएएस ऑफिसर बन गया और अपने पापा के सपने को साकार किया.

आज जानते हैं एआईआर रैंक 6 पाने वाले शुभम गुप्ता की कहानी जिनका बचपन भी जिम्मेदारियां निभाते बीता पर वे कभी हरे नहीं.

शुभम ने अपने शुरुआती पढ़ाई राजस्थान से ही की लेकिन बाद में उनके पापा को किसी काम से महाराष्ट्र जाना पड़ा वह उनके पापा ने अपना एक छोटा सा दुकान खोल लिया. शुभम को लगा क्यों नहीं अपने पापा का हाथ बटाना चाहिए इसलिए वह जब स्कूल से आते हैं तो अपने पापा के साथ दुकान पर बैठ जाते और अपने पापा के साथ देते. शुभम रात को भी अपने पापा के दुकान पर ही रहते और जब उन्हें टाइम मिलता तो वहां पर अपनी पढ़ाई किया करते.

शुभम के बड़े भाई आईआईटी की तैयारी करते थे इसलिए शुभम को लगा क्यों नहीं अपने पापा के साथ कुछ काम करना चाहिए इसलिए शुभम ने जूतों की सिलाई करना शुरू कर दिया ताकि उनके घर के खर्च में हो सहयोग कर सकें. इसके लिए शुभम ने अपना इसके लिए शुभम ने अपना बहुत सारा सपना कुर्बान कर दिया वह ना कभी जिम गए ना कभी सिएक्सपोर्ट्स पर भाग लिया ना कभी किसी पार्टी में गए वह बस अपने घर की जिम्मेदारियां निभाते रहते थे.

शुभम जब दसवीं के परीक्षा दिए तो उन्होंने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए तब लोगों ने उन्हें कहा कि तुम साइंस लेकर पढ़ो लेकिन उनका मन कॉमर्स लेने का था. शुभम ने अपने 12वीं की पढ़ाई जयपुर से पूरी करने के बाद दिल्ली चले गए वहां एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन लेना चाहते थे लेकिन उनके मन मुताबिक कॉलेज नहीं मिला जिससे शुभम को बहुत दुख हुआ. उनके भाई ने उन्हें समझाया कि जरूरी नहीं है कि आप जो चाहो वह मिले लेकिन आपको जो मिला है उसी में आप अच्छा करो यह जरूरी है सिर्फ शुभम ने वहां से बीकॉम और एम कॉम किया.

शुभम के पापा कई सारी मुश्किलों का सामना किए कई बार उन्हें ऐसा लगता था कि काश उनका बेटा अक्सर होता एक बार ऐसा समय आया जब शुभम के पापा ने शुभम से कहा कि तू अफसर बन जा. तबसे शुभम ने यह बात दिल पर ले लिया और उन्होंने ठान लिया कि मुझे किसी भी तरह अफसर बनना है.

शुभम ने सबसे पहली बार 2015 में प्रयास किया पर प्री भी पास नहीं कर पाये। दूसरे प्रयास में शुभम का सेलेक्शन हो गया पर उन्हें रैंक मिली 366इसके अंतर्गत मिलने वाले पद से वे खुश नहीं थे। उन्हें इंडियन ऑडिट और एकाउंट सर्विस में चुना गया था जहां उनका मन नहीं भरा। इसलिये उन्होंने तीसरी बार साल 2017 में फिर परीक्षा दी,इस साल भी उनका कहीं चयन नहीं हुआ।

इतनी बार हार का सामने करने के बावजूद भी शुभम का हौंसला कम नहीं हुआ और दोगुनी मेहनत से उन्होंने तैयारी की।इसी का परिणाम था कि चौथे प्रयास में शुभम न केवल सभी चरणों से सेलेक्ट हुये बल्कि उन्होंने 6वीं रैंक भी हासिल की। शुभम ने अपनी पिछली गलतियों से सबक लिया और हिम्म्त हारने के बजाय डबल जोश के साथ परीक्षा दी।

कई साल मेहनत करने के बाद आकर शुभम को सफलता मिली गए उन्होंने अपने पापा के सपना कभी साकार कर दिया. यह कहानी हमें यह सीख लेती है कि चाहे मुश्किल कितनी भी हो हमें हार नहीं माननी चाहिए और अपनी मंजिल को पाने के लिए लगातार कोशिश करनी चाहिए तभी संघर्ष के बाद सफलता मिलती है.

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