कहते हैं कितने भी मुश्किल हालात हो लेकिन अगर आप कोशिश करेंगे तो आपको सफलता जरूर मिलेगी। इस कहानी को साबित कर दिखाया है राजस्थान के बेटे पवन कुमार ने।
पवन कुमार कुमावत के पापा मात्र ₹5000 पाते थे पर ट्रक चलाते थे लेकिन उन्होंने अपने बच्चे की पढ़ाई में किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ी। पवन इसी का नतीजा रहा कि उसने UPSC में 551वीं रैंक हासिल की।
पवन कुमार कहते हैं- 2006 में रिक्शा चालक के बेटे गोविंद जैसवाल IAS बने थे। न्यूज पेपर में यह खबर मैंने पढ़ी थी। इसी के बाद ठान लिया था कि जब रिक्शा चालक का बेटा IAS बन सकता है तो ट्रक ड्राइवर का बेटा क्यों नहीं बन सकता? फिर पीछे पलटकर नहीं देखा।
झोपड़ी में रहते थे
मैं बहुत ही भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले। इन्होंने मेरे अंदर अपने सपनों को देखा। घरेलू हालात काफी खराब थे। अभाव में जीना हमने सीख लिया था। उन्होंने कहा कि हम राजस्थान में एक झोपड़ी में रहते थे और मेरे पिता मिट्टी के बर्तन बनाते थे और जैसे तैसे परिवार चल रहा था।
उसी से गुजारा चलता था। साल 2003 में नागौर आ गए। नागौर में जिस घर में हमलोग रहते थे, उसमें लाइट तक का कनेक्शन नहीं था। मैंने पिछली बार लालटेन जला कर पढ़ाई की और मेरी दादी हमेशा कहती थी भगवान के घर में देर है लेकिन अंधेर नहीं।
2003 से चला रहे ट्रक-
नागौर आने के बाद पिता रामेश्वरलाल ट्रक ड्राइवर बन गए। सैलरी के नाम पर 4 हजार रुपए मिलते थे। इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि घर के हालात कैसे रहे होंगे। उन्होंने बताया कि मेरा घर मुश्किल से चलता था और मेरी एडमिशन सरकारी स्कूल में हो गई।
इस दौरान प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया। ड्राइविंग करके जो पैसा पिता जी कमाते थे, वो मेरी पढ़ाई पर खर्च हो जाते थे। घर चलाना मुश्किल होता था। अमूमन देखने में आता है कि ट्रक ड्राइवर नशा करते हैं। अपनी सारी कमाई नशे पर खर्च कर देते हैं।
पर मेरे पिता जी के साथ ऐसा नहीं था। उन्हें किसी चीज का नशा नहीं है। आज भी पिता जी ट्रक चलाते हैं।
उन्होंने कहा कि मेरे पिताजी ने मुझे पढ़ाने के लिए ब्याज पर पैसे लिए और कुछ दिनों के बाद ब्याज वालों ने मुझे परेशान करना शुरू कर दिया और मेरे पिताजी का भी परेशान होने लगे लेकिन उन्होंने मेरे पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। उनका मेहनत रंग लाया और एक दिन पवन आईएएस अफसर बन गए।