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यहां से देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने की थी पढ़ाई, इस क्लास में पिता-पुत्र सहपाठी

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हमेशा ही लोगों के दिलों में बसते हैं. बता दें, आज यानी मंगलवार के दिन वाजपेयी जी की पुण्यतिथि है. उनका उत्तर प्रदेश के कानपुर से एक खास जुड़ाव रहा है. दरअसल, उनका अधिकतम जीवन कानपुर में ही बीता है.

कानपुर में गुजरा छात्र जीवन
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का जन्म आगरा के बटेश्वर गांव में हुआ था लेकिन उनका अधिकतम जीवन कानपुर में बीता. बाजपेयी जी ने सन 1945 में कानपुर के डीएवी डिग्री कॉलेज में राजनीति शास्त्र में मास्टर्स आफ आर्ट्स में दाखिला लिया था. वे डीएवी कॉलेज में बने हॉस्टल के कमरा नंबर 104 में रहते थे. वर्ष 1947 में राजनीति शास्त्र से एमए की पढ़ाई पूरी करके उन्होंने डिग्री हासिल की थी. अटल जी ने एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद 1948 में डीएवी कॉलेज में एलएलबी में दाखिला लिया था.

पिता-पुत्र हॉस्टल में रहते थे एक साथ
खास बात यह है कि अटल जी के साथ उनके पिता पं. कृष्णबिहारी लाल बाजपेयी ने भी एलएलबी करने का फैसला किया था. उन्होंने भी दाखिला करवा लिया. यही नहीं एक साथ पढ़ाई करने के साथ ही अटल जी के साथ हॉस्टल के कमरे में पिता भी रहते थे. विद्यार्थियों की भीड़ उन्हें देखने आती तो पिता-पुत्र एक ही कक्षा में बैठकर पढ़ाई करते थे. पिताजी के देर से आने पर प्रोफेसर अक्सर उनसे मजाकिया अंदाज में पूछते थे, ‘कहिए आपके पिताजी कहां गायब हैं? अटल जी को देर होती तो पिताजी से पूछते थे कि आपके साहबजादे कहां नदारद हैं?’ बाद में अटल जी ने अपना सेक्शन बदलवा लिया था और फिर अलग कक्षा में पढ़ाई करने लगे थे.

भाषण सुनने को लगती थी भीड़
एलएलबी की पढ़ाई बाजपेयी जी ने पूरी नहीं की और राजनीति में सक्रिय हो गए. उन्होंने डीएवी कॉलेज में एलएलबी की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी थी. हॉस्टल के कमरे में रोजाना बैठकें होना शुरू हो गईं और राजनीतिक मुद्दों पर बहस छिड़ने पर वह बेबाकी से अपनी बात रखते थे. कॉलेज में अटल जी का भाषण सुनने के लिए बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं एकत्र हो जाते थे. एलएलबी की पढ़ाई छोड़ने पर उन्हें राजनीतिक दायित्व निभाने के लिए जनसंघ ने लखनऊ बुला लिया था.

कविताओं से जीत लेते थे दिल
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई में बचपन से एक कवि छिपा हुआ था और वह अपनी बातों को भी अक्सर कविताओं में बयां करते थे. वह वीर रस और शृंगार रस में कविताओं से सहपाठियों और प्रोफेसरों के दिलों को छू लेते थे. कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वह कविताओं की झड़ी लगा देते थे और सुनने वाले झूम उठते थे.

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