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IAS नहीं बने तो मां ने घर से निकाला,बारटेंडर का किया जॉब,आज हजारों स्टूडेंट्स को करा रहे हैं UPSC टॉप, जानिए छात्रों के चहेते शिक्षक की कहानी

कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने मेहनत के दम पर अपनी काबिलियत की कहानी लिखते हैं। आज हम आपको एक ऐसे इंसान की कहानी बताने वाले हैं जिसने कई साल संघर्ष किया लेकिन हिम्मत नहीं हारी और अपने मेहनत के दम पर अपने काबिलियत की कहानी लिख डाली। आज हम आपको बताने वाले हैं नीरज झा की कहानी जो बच्चों को यूपीएससी की तैयारी यूपी में कराते हैं।

नीरज झा अपनी कहानी बताने कहते हैं कि जब मैंने यूपीएससी एक्जाम क्रैक नहीं किया तब मेरी मां ने मुझे घर से निकाल दिया।

मैंने भी गुस्से में कहा, आप भगवान तो हैं नहीं। मां ने कहा, मैं भगवान नहीं हूं तो निकल जाओ घर से…। साल 2000 से 2007 तक, 7 साल घर से बाहर रहा। जिंदगी की असल सीख इस दौरान मिली। एक दोस्त से 100 रुपए मांगे तो नहीं दिए।

UPSC की तैयारी करने वाले करोड़ो छात्रों के चहेते टीचर अवध ओझा ये बात क्लासरूम में अपने लेक्चर के दौरान नहीं, मीडिया बातचीत में कह रहे हैं।

सोशल मीडिया पर इनके कई वीडियो क्लिप काफी वायरल हैं। अब अवध प्रताप ओझा, ओझा सर के नाम से मशहूर हैं।

अभी वो 1,000 से अधिक UPSC की तैयारी करने वाले छात्रों को ऑनलाइन-ऑफलाइन माध्यम से पढ़ा रहे हैं। अवध अपनी 22 साल की जर्नी में कई उतार-चढ़ाव और संघर्ष के बाद यहां तक पहुंचे हैं।

अवध ओझा यूपी के गोंडा के रहने वाले हैं। 1992 में वो इलाहाबाद आ गए थे। यहां उन्होंने कई साल UPSC की तैयारी की, लेकिन वो क्रैक नहीं कर पाए।

अवध ओझा यूपी के गोंडा के रहने वाले हैं। 1992 में वो इलाहाबाद आ गए थे। यहां उन्होंने कई साल UPSC की तैयारी की, लेकिन वो क्रैक नहीं कर पाए।

अवध कहते हैं, “जन्म यूपी के गोंडा जिले में हुआ। पिता पोस्ट ऑफिस में थे। एवरेज स्टूडेंट था। पढ़ाई में इंट्रेस्ट नहीं था। हालांकि, इलाहाबाद आना जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट था।”

वो इसके पीछे का एक दिलचस्प किस्सा बताते हैं। कहते हैं, “गोंडा से बहराइच पढ़ने के लिए गया था। एक साल रहा, लेकिन उसी दौरान कुछ घटनाएं घटी, जिसके बाद इलाहाबाद आना पड़ा। एक दोस्त ने गलती से इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के दो फॉर्म ले आएं थे। मैंने एक फॉर्म भर दिया।

एंट्रेंस टेस्ट में शामिल हुआ तो मेरे आगे बैठे लड़के ने सारे सवालों के जवाब बता दिए। एडमिशन हो गया। यहां कई अच्छे टीचर्स से मुलाकात हुई। मैंने भी थोड़ा-बहुत पढ़ना शुरू कर दिया।”

अवध को माता-पिता मेडिकल की तैयारी करवाना चाहते थे, लेकिन उनकी दिलचस्पी नहीं थी। वो कहते हैं, “समाज में एक अलग हवा चलती है। यदि कोई मेडिकल की तैयारी कर रहा है तो उस गांव के सारे पेरेंट्स चाहते हैं कि उनका बच्चा भी मेडिकल की ही तैयारी करे। मेरे साथ भी यही हुआ।”

अवध ओझा कहते हैं, “शुरुआती जीवन ‘अंगुलिमाल’ जैसा था। शराब-सिगरेट की लत थी, लेकिन अच्छे लोगों की संगत ने सब कुछ बदल दिया। योग-ध्यान की तरफ झुकाव होने लगा।”

दरअसल, अंगुलिमाल बौद्ध काल में एक दुर्दांत डाकू था जो श्रावस्ती के जंगलों में राहगीरों को मार देता था और उनकी उंगलियों की माला बनाकर पहनता था। बाद में भगवान बुद्ध के शरण में जाने पर अंगुलिमाल संत बन गया।

अपनी आदत सुधारने के पीछे अवध ओझा एक और दिलचस्प कहानी बताते हैं। कहते हैं, “एक बार ट्यूशन टीचर ने पूछा- किसी के पास माचिस है। मैंने निकाल कर दी। उन्होंने पूछा- माचिस लेकर घूमते हो? मैंने कहा- हां, मां ने मंगवाया था। उन्होंने सुनते ही दो-तीन थप्पड़ जड़ दिए। दरअसल, मेरी झूठ पकड़ी गई थी। माचिस खुली थी, आधा खाली था।”

वो बताते हैं, “पैसे का कोई सोर्स नहीं था। तंगी थी, मकान-कोचिंग का किराया देने तक के पैसे नहीं थे। उसी दौरान शादी भी हो गई। 7 महीने रात के 8 बजे से 2 बजे तक बारटेंडर की जॉब करता था और दिन में पढ़ाता था। यहां से फिर धीरे-धीरे पहचान मिलने लगी।

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