श्रम विभाग ने प्रदेश के चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत सेवाप्रदाता एजेंसियों को नोटिस जारी कर पूरा विवरण मांगा है। इसमें पंजीयन से लेकर कार्मिकों की संख्या, उन्हें दिए जा रहे मानदेय आदि की जानकारी शामिल है। गौरतलब है कि चिकित्सा संस्थानों में इन एजेंसियों के जरिए डॉक्टर से लेकर सफाईकर्मी तक नियुक्त हैं। केजीएमयू में 11 एजेंसियां कार्य रही हैं। इनके जरिए 1500 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं।
इसी तरह लोहिया संस्थान, एसजीपीजीआई, कैंसर संस्थान सहित अन्य संस्थानों में 5 से 10 एजेंसियां काम कर रही हैं। इन एजेंसियों के जरिए कार्यरत कर्मचारी अकसर मानदेय भुगतान में गड़बड़ी का मुद्दा उठाते रहे हैं। उत्तर प्रदेश आउटसोर्सिंग संविदा कर्मचारी संघ ने इस मामले में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या को भी ज्ञापन सौंपा था। मंत्री के निर्देश के बाद अधिकारी अब इन एजेंसियों की मनमानी रोकने में जुट गए हैं।
पिछले माह शासन ने इन कर्मचारियों को मानदेय भुगतान से लेकर अन्य सुविधाएं देने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद एजेंसियां मनमानी कर रही हैं। केजीएमयू में यह धांधली पकड़ी भी गई। इसके बाद श्रम विभाग ने चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत एजेंसियों से मानदेय भुगतान और कर्मचारियों के बारे में जानकारी मांगी है। अपर मुख्य सचिव श्रम एवं सेवायोजन सुरेश चंद्रा ने निर्देश दिया कि नियमावली के तहत मजदूरी दर, छुट्टी, काम के घंटे और सेवा की अन्य स्थितियों का विवरण दिया जाए।
केजीएमयू में मानदेय को लेकर लंबे समय से चल रहा विवाद
केजीएमयू में मानदेय को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा है। यहां अनशन से लेकर धरना- प्रदर्शन तक हो चुके हैं। राष्ट्रीय जनाधिकार परिषद के अध्यक्ष फतेह बहादुर सिंह नए सिरे से मामले में शिकायत की। उन्होंने कहा कि संविदा श्रमिकों को संविदा श्रमिक (विनियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम 1970 के अनुसार निर्धारित मजदूरी व अन्य सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं। इस पर अपर श्रमायुक्त ने केजीएमयू के कुलसचिव और सभी आउटसोर्सिंग एजेंसियों को 18 मार्च को तलब किया है।