लखनऊ। श्मशान घाट पर आम दिनों से ज्यादा भीड़ थी। पार्किंग फुल हो चुकी थी। गाड़ियां बाहर सड़क तक लगी थीं। श्मशान के अंदर जहां तक नजर जा रही थी, जलती चिताएं ही नजर आ रही थीं। पक्के प्लेटफॉर्म से लेकर सड़क, फुटपाथ व नदी किनारे तक चिताएं फूट फूटकर रोते लोग और अंतिम संस्कार की जद्दोजहद ही दिखाई दे रही थी। यह माहौल था मंगलवार शाम गुलालाघाट श्मशान घाट का। एक मित्र के पिता जी की अंत्येष्टि में शामिल होने पहुंचे अमर उजाला रिपोर्टर ने जो यहां जो देखा वह आपके लिए जानना भी बेहद जरूरी है…।
हम श्मशान घाट पहुंचे तो भारी भीड़ थी। शव को नीचे उतारा और लकड़ी खरीदने पहुंच गए। कुल तीन क्विंटल लकड़ी लगनी थी। विक्रेता ने 3000 रुपये मांगे, जो लिस्ट में तय रेट से ज्यादा था। दोस्त ने एतराज करते हुए बोर्ड पर लगे नंबर पर शिकायत करने की बात कही। विक्रेता ने कहा, बिल्कुल शिकायत करिये, लेकिन उधर जो नीम का पेड़ दिख रहा है वहां जाकर नंबर मिलाओ, पीछे वालों को आगे आने दो। हमारे पीछे जो लोग लकड़ी लेने के लिए खड़े थे, उन्होंने किना बहस 3000 रुपये दे दिए। विक्रेता ने लकड़ी तौलवाई और खुद चिता तक पहुंचा दी। फिर उसने हमें इशारे से बुलाया और तय रेट पर ही लकड़ी दे दी। पक्के प्लेटफॉर्म के पास थोड़ी जगह खाली थी। वहां चिता लगवाने के लिए लकड़ी विक्रेता भी चल दिया। वहां पहुंचने वाली सड़क किनारे एक महिला, अपनी बेटी के साथ बैठी रो रही थी। एक शव उनके पास पड़ा था। जो लकड़ी विक्रेता वसूली में लगा था, वह महिला के पास गया और उसकी व्यथा पूछी। महिला के पास लकड़ी व शवदाह के लिए पैसे नहीं थे। जो पैसे थे वे एंबुलेंस से शव घाट तक पहुंचाने में ही खर्च हो गए थे। उसने लकड़ी का इंतजाम करवाकर शवदाह करवाया। हमारी ओर देखकर बोला- ऐसे मामले भी आ जाते हैं। आपसे जो कुछ ज्यादा लेते हैं, वो यहां खर्च कर देते हैं।
शवों की भीड़ से चकरा जाता है दिमाग
घाट पर बने पक्के प्लेटफॉर्म के बाहर कतार में लगे शवों का एक-एक दाह संस्कार किया जा रहा था। हमारा आठवां नंबर था। यह दृश्य दिल को झकझोर देने वाला था। शव जलाने वाले ने बताया कि आम दिनों में 15 से 20 शवदाह करते थे, लेकिन अब रोजाना 100 से 120 शवों का अंतिम संस्कार हो रहा है। इसमें कोविड और नॉनकोविड दोनों शामिल हैं। ऐसे में कई बार दिमाग काम करना बंद कर देता है। इसके चलते लोगों से बहस भी हो जाती है। बाद में इसका अफसोस भी होता है।
कव्वे गायब, कुत्तों की भरमार
गुलालाघाट में आम दिनों में पीपल के पेड़ों पर समूहों में बैठे कव्वे नजर आ जाते थे, लेकिन इन दिनों घाट से कव्वे गायब हैं। दिन-रात जलती चिताओं और लोगों की आवाजाही से ये गायब हो गए हैं। इन दिनों यहां कुत्तों की भरमार जरूर हो गई है। शव जलाने वालों ने बताया कि 50 से 60 की संख्या में मौजूद कुत्ते कई बार संकट खड़ा कर देते हैं।
चिताओं की आंच से सूख रहे हरे पेड़
घाट पर लगातार जलती चिताओं की आंच से यहां लगे पीपल, नीम आदि के पेड़ सूखते जा रहे हैं। इनके पत्ते पीले पड़े जा रहे हैं। जगह नहीं होने से वहां भी शव जलाए जा रहे हैं जहां मुर्दों को दफभन किया जाता था। यहां लगे पेड़ के तने चिताओं की आंच से काले पड़ गए हैं। कई छोटे पेड़ तो पूरी तरह जल गए हैं।