जीनोम सीक्वेंसिंग की तैयारी में जुटे केजीएमयू और एसजीपीजीआई
चंद्रभान यादव
ब्रिटेन में कोरोना वायरस का नया स्ट्रेन मिलने के बाद एसजीपीजीआई और केजीएमयू जीनोम सीक्वेंसिंग की तैयारी में जुट गए हैं। इन्हें शासन से हरी झंडी मिलने का इंतजार है।
क्योंकि यह जांच काफी महंगी होती है। अभी तक यहां प्रायोगिक तौर पर ही जांच होती रही है। विस्तृत जांच के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) को सैंपल भेजा जा रहा था।
आईसीएमआर सभी राज्यों से सैंपल मंगाकर जीनोम सीक्वेंसिंग कर रहा था। इससे वायरस के स्ट्रेन के बारे में जानकारी मिल जाती थी।
हाल ही ब्रिटेन में आए नए स्ट्रेन की जानकारी के बाद जीनोम सीक्वेंसिंग बढ़ाने की तैयारी चल रही है। ब्रिटेन से आने वाले हर व्यक्ति के सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग अनिवार्य कर दी गई है।
सूत्र बताते हैं कि केजीएमयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। जांच में आने वाले खर्च का भी आकलन किया गया है।
माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. अमिता जैन ने बताया कि अभी तक सैंपल को आईसीएमआर में भेजा जाता था, लेकिन सरकार का निर्देश होगा तो यूनिवर्सिटी यह जांच शुरू कर देगी।
एसजीपीजीआई व सीडीआरआई कर चुके हैं जांच
एसजीपीजीआई व सीडीआरआई ने मिलकर करीब 100 सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग की थी। इससे यह पता लगाने का प्रयास किया गया था कि अलग-अलग इलाके में कोरोना के खास स्ट्रेन की स्थिति क्या है। जांच से जुड़े सूत्र बताते हैं कि राजधानी सहित आठ जिलों से आए सैंपल में भिन्नता नहीं पाई गई है। ज्यादातर मरीजों में दिल्ली में मिला ए-2-ए स्ट्रेन पाया गया है। इसका प्रभाव सामान्य बताया जा रहा है। इस संबंध में एसजीपीजीआई की माइक्रोबायोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. उज्ज्वला घोषाल का कहना है कि यह जांच काफी महंगी होती है। ब्रिटेन से आने वाले सभी लोगों के सैंपल की जिनोम सीक्वेंसिंग की बात कही जा रही है। ऐसे में शासन से निर्देश मिलने पर जीनोम सीक्वेंसिंग की जाएगी। अभी यहां प्रायोगिक तौर पर किया गया है। संबंधित सैंपल को आईसीएमआर भी भेजा गया है।
इन सवालों के जरिए आसान शब्दों में जानिए सबकुछ
जीनोम सीक्वेंसिंग है क्या?
जीनोम किसी जीव की कुंडली है। जीव कैसा होगा, कैसा दिखेगा, यह सब कु छ जींस तय करते हैं। इन्हीं जींस के विशाल समूह को जीनोम कहते हैं। जींस के सीक्वेंस को जानना ही जीनोम सीक्वेंसिंग है।
स्ट्रेन क्या है?
स्ट्रेन को आसान शब्दों में जेनेटिक वैरिएंट कह सकते हैं। यह सबकुछ वैसे ही जैसे एक ही कंपनी की कारें अलग-अलग वैरिएंट में आती हैं। एक ही मॉडल के अलग-अलग वैरिएंट की क्षमता अलग-अलग होती है।
अभी ये चर्चा में क्यों है?
हाल ही ब्रिटेन में कोरोना के नए स्ट्रेन का पता चला। अब किसी शख्स में वायरस का वह स्ट्रेन तो नहीं इसके लिए उसकी कुंडली (जीनोम सीक्वेंसिंग) को खंगालना जरूरी होगा।
इसके बारे में हमें जानने की जरूरत क्यों है?
विशेषज्ञों का कहना है कि जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चलता है कि वायरस किस जीनोम का बना है। यानी लैब में वायरस के आरएनए से उसकी पूरी कुंडली तैयार की जा सकती है। सीक्वेंसिंग से वायरस के रूपांतरित होने के बारे में भी जानकारी मिल सकती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि सीक्वेंसिंग से प्राप्त जानकारी से वैक्सीन के विकास में भी मदद मिल सकती है।
इसका हमारे लिए संदेश क्या है?
अब तक कोरोना वायरस के 17 तरह के स्ट्रेन के बारे में जानकारी मिली है। अपने ही देश में करीब 10 तरह के स्ट्रेन पाए गए हैं। भारत में कोरोना का सबसे ज्यादा ए-2-ए स्ट्रेन मिला है। इसके अलावा बी-4, बी, ए-3-ए, ए-1-ए, बी-1, ए-3-आई, आदि भी पाए गए हैं। इनमें तेजी से फैलने वाले ए-3-आई को ज्यादा खतरनाक माना जाता है। किसी को भी यह बताया जाए कि कोरोना वायरस के इतने रूप सामने आ चुके हैं तो हम ज्यादा सजग रहेंगे।