वर्ष 1990 में विस्थापित होकर राजधानी आए कश्मीरी पंडित मनीष अपने 77 वर्षीय पिता का राशन कार्ड प्रमाणित कराने के लिए करीब 11 सालों से तहसील का चक्कर लगा रहे हैं। उनकी शिकायत है कि वह 1990 से 1996 तक लखनऊ में ही रहे हैं, इस दौरान उनके पिता को राशन कार्ड जारी हुआ था। अब अधिकारी 1990 में जारी अपने ही राशन कार्ड को प्रमाणित करने से बच रहे हैं।
उनकी मांग है कि या तो उनका राशन कार्ड प्रमाणित किया जाए या फिर उन्हें इस अवधि में राजधानी में निवास करने का कोई सबूत दे दिया जाए। कुछ ऐसी ही लालफीताशाही के शिकार 423 लोग न्याय की आस लिए मंगलवार को राजधानी की पांचों तहसीलों पर अधिकारियों के सामने उपस्थित हुए। संपूर्ण समाधान दिवस पर न्याय की आस में सुबह 8 बजे से ही फरियादियों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। उपजिलाधिकारी सदर प्रफुल्ल त्रिपाठी, तहसीलदार ज्ञानेंद्र सिंह ने अन्य मातहतों के साथ फरियादियों की समस्याएं सुनना शुरू कर दिया। इस दौरान कुछ शिकायतों का मौके पर निस्तारण कराया गया तो कई समस्याओं के लिए संबंधित विभागों को निर्देशित किया गया। कश्मीरी युवक मनीष की समस्या पर कहा कि जो राशन कार्ड प्रमाणित करने के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है, उसका रिकॉर्ड बहुत पुराना होने के कारण उपलब्ध नहीं है।
दो साल से नहीं हुई पैमाइश
बाघामऊ निवासी रमेश चंद्र ने बताया कि वह अपनी जमीन की पैमाइश करवाने के लिए दो सालों से तहसील का चक्कर लगा रहे हैं। लेकिन लेखपाल व राजस्व निरीक्षक कभी मौके पर नहीं पहुंचे। वहीं विनय त्रिपाठी ने उत्तरधौना में जबरन कब्जे की शिकायत की। 80 वर्षीय छेदाना देवी, परवीन और राम कुमार पांडेय ने कुछ लोगों द्वारा अवैध कब्जे की बात कही तो वहीं शालिनी यादव ने आय प्रमाण पत्र न जारी होने की शिकायत की। इन सभी की समस्याओं पर एसडीएम सदर ने तत्काल कार्रवाई के लिए निर्देशित किया।
10 कर्मियों का रुकेगा वेतन
एसडीएम सदर ने बताया कि मंगलवार को तहसील दिवस पर कुल दस कर्मी नदारद रहे। इन सभी का एक दिन का वेतन रोकने का आदेश दिया गया है।
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं
तहसील दिवस में बड़ी संख्या में फरियादी पहुंचे। तहसील प्रशासन ने कोरोना गाइडलाइन का पालन करने की अपील तो की लेकिन कुछ फरियादी बिना मास्क के पहुंचे तो कइयों ने सोशल डिस्टेंसिंग का जरा सा भी पालन नहीं किया।