पहली बाधा पार, अनियोजित कॉलोनियों में एलडीए पास करेगा नक्शे, गठित समिति ने की सिफारिश
अतुल भारद्वाज
राजधानी में बस चुकीं अनियोजित कॉलोनियों में एलडीए मानचित्र स्वीकृत करना शुरू कर सकता है। इसके लिए गठित समिति ने मंडलायुक्त को सौंपी रिपोर्ट में इसकी संस्तुति की है।
अब इसे लेकर मंडलायुक्त रंजन कुमार सोमवार को एलडीए अधिकारियों से वार्ता भी कर सकते हैं। समिति ने गोरखपुर, अलीगढ़ और सहारनपुर विकास प्राधिकरण में चल रही प्रक्रिया का अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की है।
समिति में मुख्य नगर नियोजक आरजी सिंह की अध्यक्षता में अधिशासी अभियंता कमलजीत सिंह, अवनींद्र कुमार सिंह और केके बंसला को रखा गया था। यह अभियंता संबंधित विकास प्राधिकरणों में तैनात भी रहे हैं।
जानिए समिति ने रिपोर्ट में चार बिंदुओं पर क्या कहा
– पांच अगस्त 2008 और दो दिसंबर 2003 के शासनादेश के अनुसार कॉलोनी को नियमित कर नक्शे स्वीकृत किए जा सकते हैं।
– महायोजना 2031 में तय किए गए भू-उपयोग जोन के मुताबिक सर्वेक्षण करा लिया जाए। इससे जरूरी अवस्थापना सुविधाओं का आकलन किया जाएगा। इसके बाद विकास शुल्क निर्धारित कर इलाके में मानचित्र स्वीकृत किए जाएं।
– अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण और अवस्थापना सुविधाओं को विकसित करने के लिए विकास शुल्क निर्धारित कर दिया जाए। इसके बाद आनुपातिक रूप से विकास शुल्क लेकर नए निर्माण के लिए मानचित्र स्वीकृत किए जाएं।
– यह भी संभावना बताई जा रही है कि मानचित्र स्वीकृत शुरू होने के बाद एलडीए पूर्व के निर्माणों का शमन भी शुरू कर दे।
किन प्राधिकरणों में क्या व्यवस्था
गोरखपुर विकास प्राधिकरण : यहां निर्मित क्षेत्र में पांच प्रतिशत और अविकसित क्षेत्र में 10 प्रतिशत तक सर्किल रेट का उपविभाजन शुल्क लिया जाता है। व्यावसायिक निर्माण पर आवासीय दर का दोगुना शुल्क हो जाता है। इसके अलावा अन्य मानचित्र शुल्क भी आवेदक को जमा करना होता है।
अलीगढ़ विकास प्राधिकरण : यहां अनाधिकृत कॉलोनियों में आवासीय भू-उपयोग पर 120 रुपये और व्यावसायिक भू-उपयोग पर 180 रुपये प्रति वर्गमी. आंतरिक विकास शुल्क लिया जाता है। इसके अलावा अन्य शुल्क भी बिल्डिंग बाइलॉज के मुताबिक देना होता है।
सहारनपुर विकास प्राधिकरण : अनियोजित कॉलोनियों में यहां बिना ले-आउट पास कर बने भूखंड पर अतिरिक्त तीन प्रतिशत सर्किल दर का शुल्क लिया जाता है। 120 वर्गमी. तक के भूखंड के लिए इस तरह नक्शे स्वीकृत किए जाते हैं। भवन निर्माण हो जाने पर शमन शुल्क और आंतरिक विकास शुल्क भी अलग से देना होता है।
रेवेन्यू नहीं, जनहित भी देखिए
अनियोजित इलाकों में मानचित्र स्वीकृत करने में एलडीए अधिकारी इसलिए भी दिलचस्पी नहीं लेते क्योंकि, बड़े मानचित्र जैसे अपार्टमेंट, व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स या आवासीय कॉलोनियों से ही मोटा राजस्व मिल जाता है। लेकिन अफसरों को समझना होगा कि अनियोजित कॉलोनियों के विकास और नियोजन की जिम्मेदारी भी एलडीए की है। अगर ऐसा होगा तो लोगों की भी मुश्किलें दूर होंगी। जहां अवैध निर्माण का धब्बा उनके ऊपर से हटेगा। वहीं होमलोन, अवस्थापना कार्य जैसी सुविधाएं भी उन्हें मिल सकेंगी। एलडीए की लापरवाही से ही अनियोजित कॉलोनियां बसीं। अब अधिकारियों को ही उचित प्रयास कर वहां नक्शे स्वीकृत कराना शुरू करना चाहिए। अभी एलडीए इन कॉलोनियों में नक्शे स्वीकृत नहीं करता है लेकिन, निर्माण शुरू होने पर कार्रवाई करने पहुंच जाता है। जबकि, कॉलोनियों में अधिकांश निर्माण पूरे हो चुके हैं और आबादी बस चुकी है।
एलडीए बोर्ड में भी रखा जा चुका है प्रस्ताव
मंडलायुक्त को दी गई रिपोर्ट के मुताबिक एलडीए की बोर्ड बैठक में सात मई 2018 को अनियोजित कॉलोनियों में नौ मीटर या इससे अधिक सड़क होने पर उपविभाजन शुल्क, आंतरिक विकास शुल्क व अन्य शुल्क लेकर मानचित्र स्वीकृत किए जाने का प्रस्ताव आया था। बोर्ड ने शासन को प्रस्ताव बनाकर भेजने को कहा। इसमें पूर्व के निर्माणों को भी नियोजित करने के लिए निर्देश दिए गए। मुख्य नगर नियोजक कार्यालय से एक पत्र शासन को भी भेजा जा चुका है। समिति ने प्रस्ताव दिया है कि शासन से संपर्क कर दिशा-निर्देश प्राप्त कर लिए जाएं। इससे अनियोजित इलाकों के मानचित्र स्वीकृत होना शुरू हो जाएंगे।
शहर का 70 फीसदी विकास अनियोजित
एलडीए अफसरों के मुताबिक, शहर का 70 फीसदी इलाके में अनियोजित विकास हुआ है। यहां निर्माणों के लिए प्राधिकरण नक्शे पास नहीं करता है। इसके पीछे अफसर तर्क देते हैं कि ले-आउट एलडीए से स्वीकृत नहीं है।