पहले ही आर्थिक तंगी और उसके ऊपर कोरोना का कहर। माहौल के कुछ सामान्य होते ही मुस्कान, करन, ऋतिक और मान कुमार एक बार फिर अपनी हॉकी स्टिक के साथ चंद्रभानु गुप्त हॉकी मैदान में उतर आए हैं। ये चारों सगे भाई-बहन हैं और एक दूसरे को खेलता देख हॉकी को अपनी जिंदगी का अहम हिस्सा मान चुके हैं।
गौर करने वाली बात है कि इस छोटी हॉकी फैमिली के अभिभावक चंद्रभानु गुप्त मैदान के ठीक सामने नाले के पुल पर बनी अस्थायी छोटी दुकान चलाते हैं, जिससे उनके घर का गुजर-बसर मुश्किलों से हो पाता है। दरअसल, चंद्रभानु गुप्त मैदान में संचालित केडी सिंह बाबू सोसाइटी हॉकी खिलाड़ियों की पौध तैयार करने के लिए जानी जाती है।
तकरीबन पांच साल पहले युवाओं को मैदान मेें खेलते देख करन ने कोच राशिद से हॉकी ट्रेनिंग की अनुमति मांगी और अपनी बहन मुस्कान के साथ सुबह और शाम को अन्य खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू कर दिया। दो साल के बाद उनके छोटे भाई ऋतिक और मान कुमार भी ग्राउंड में हॉकी की ट्रेनिंग करने जाने लगे।
चारों बच्चों को हॉकी खेलता देख पिता भोला और मां सीमा को उम्मीद की किरण दिखी है कि एक दिन ये चारों बड़े हॉकी खिलाड़ी बनकर परिवार की आर्थिक तंगी को दूर करेंगे। बड़े बेटे करन ने इस साल ऑल इंडिया केडी सिंह बाबू हॉकी प्रतियोगिता में यूपी के लिए शानदार प्रदर्शन करते हुए टीम को खिताब से नवाजा।
पिता बोले- बच्चों को कभी खेलने से नहीं रोका
इस प्रतियोगिता मेें विजेता टीम के रूप में करन इनाम के तौर पर चौदह हजार रुपए लेकर आए। इसे देखकर सीमा और भोला की खुशी का ठिकाना न था, क्योंकि ये राशि उनके घर को चलाने के लिए तीन माह के खर्च के बराबर थी। पिता भोला कहते हैं कि हमने अपने बच्चों को कभी खेलने से नहीं रोका।
करन की तरह मुस्कान भी कई बड़ी प्रतियोगिताओं खेल चुकी हैं और अब ऋतिक और मान भी अपने बड़े भाई- बहन की तरह परिवार का नाम रोशन करेंगे। इस बच्चों की मां सीमा बतातीं है कि हमने कभी नहीं सोचा था कि बच्चे हॉकी खेलेंगे।
एक बार यहां के कोच राशिद ने हमसे अपने बड़े बेटे करन को भेजने को कहा। बड़े भाई को खेलते देख मुस्कान, ऋतिक और मान खुद ही वहां खेलने लगे। चारों बच्चे बहुत अच्छे है समय हॉकी ट्रेनिंग के साथ पढ़ाई के अलावा दुकान मेें भी समय देते हैं।
आर्थिक तंगी से जूझने के बावजूद भोला और आरती ने कभी अपने बच्चों को हॉकी ट्रेनिंग करने से नहीं रोका। करन और मुस्कान बहुत प्रतिभावान खिलाड़ी है। इस समय अगर दोनों का एडमिशन हॉकी हॉस्टल में हो जाता है तो उनका कॅरिअर संवर सकता है।’– मो. राशिद, साई हॉकी कोच
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पिता बोले- बच्चों को कभी खेलने से नहीं रोका